जब हम मुस्लिम औरतों मे Dress code की बात करते है तो एक ऐसा रूप सामने आता है जो पूरी तरह एक काले कपड़े से लिपटा हुआ है,चेहरे मे से दो आंखे दिखती हुई । कुछ अजीब सा नहीं लगता ? बेहद अजीब मगर अब दुनिया का एक बड़ा हिस्सा इसका आदि हो चुका है शायद बहुतों को बहुत बुरा भी लगे क्योंकि ये उन औरतों की पहचान बन चुकी है , जबकि इन्सानो के लिए खुदावंद ने खूबसूरत और बेहतरीन लिबास उतारे ज़मीन पर फिर भी वो कुछ ऐसा पहन ले जो उसके वजूद की बुनियाद को फ़ना कर दे । क्या यह सही है ? ये एक सवाल है उन तमाम मज़हबी पेशवाओ से जिनहोने मज़हब की ठेकेदारी अपने कंधो पे लिए चल रहे है।कुरान ने लिबास के बारे मे क्या बुनियादी बात कही :-
ऐ आदम कि औलादों , हमने लिबास आपके जिस्म को ढंकने के लिए दिये और साथ ही विलासिता के लिए ।लेकिन सबसे अच्छा लिबास तो नेकी का है । 7 : 26
कुरान की ये बाते मर्द और औरत दोनों के लिए बराबर लागू होती है लेकिन देखा ये गया कि western world मे मर्द टाई लगा ऊपर से नीचे तक up to date देखा जाता है लेकिन उसी सभ्य समाज की औरते अपने जिस्म की नुमाइश करती देखी जाती है ।और कही औरतों को बुर्को से ढ़क दिया जाता है वो सोचते है जैसे औरते कोई मर्तबान है कोई बेजान-सा सामान । क्या ये पैमाने सही महसूस होते है ? बिलकुल नहीं खुदा ने हमे ऐसा बनाया ही नहीं । खुदा ने इस बात की वजाहत की
आप मोमिन मर्दों से फ़रमा दें कि वो अपनी निगाहें नीची रखा करें और अपनी पवित्रता बनाये रखे यह उनके लिए बड़ी पाकीज़ा बात है। बेशक अल्लाह उन कामों से खूब आगाह है जो यह अंजाम दे रहे हैं।24:30
और आप मोमिन औरतों से फ़रमा दें के वो (भी) अपनी निगाहें नीचीं रखा करें और अपनी पवित्रता बनाये रखे और ।वे अपने जिस्म के किसी हिस्से को ज़ाहिर नहीं करेंगी सिवाय इसके की जो ज़रूरी हो, वो अपने सीनो को ढांकेगी और वो अपनी जिस्म की छुपाने वाले आज़ा ज़ाहिर न किया करें सिवाए अपने ………..।24:31
ये कुरान की आयते मुकम्मल तौर पर ये बताती है आदमी और औरत के आदाब किस तरह के हो । वो एक कहावत बोली जाती है कि “ आंखो मे शर्म होना चाहिए “ कुरान कि आयते सनद बनी है इन जैसी कहावतो के लिए यकीनन जिन आंखो मे गैरत नहीं वो ही बेहया है । जिस समाज की तालीमात मे अख्लाकीयत,शराफ़त से ज़्यादा कपड़ो से औरतों को ढाँक देने का रिवाज हो वो समाज इतिहास बन जाता है । दुनिया मे मुसलमानो के बदलते हालात इस बात की गवाही दे रहे है ।
घूँघट प्रथा
यदि हम अपने मुल्क हिंदुस्तान की बात करे तो यहा भी घूँघट का चलन है, जो उस एक शख्सियत को गुम करने की कोशिश है जिसका वजूद है, हम किसी के वजूद को किसी के साये मे छिपाकर ख़त्म नहीं कर सकते है । मैंने पाया की कुछ मज़हबी लोगो ने मजहब का नाम ले औरत को मर्द की दासी करार दिया । जो लोग मजहब की किताबे नहीं पड़े है वो भी ऐसा ही सोचते है ।
खुदा ने मर्द और औरत को एक दूसरे का साथी (companion ) बनाया , मर्द को घर के बाहर की दुनिया की तमाम ज़िम्मेदारी दी तो औरत को घर रूपी दुनिया की अहम ज़िम्मेदारी दी लेकिन पुरुष प्रधान समाज का अभिशाप औरत को ऐसा लगा की वो अपने वजूद की दास्तां खुद बन गई ।
मुस्लिम मुल्लाओ ने अरब के culture मे जिस तरह के कपड़े पहने जाते रहे उसे मजहब का चोगा बना दिया । हिजाब, जिलबाब ,निकाब और बुर्का जैसे कई नाम दे दिये । कुरान ने यह भी बता दिया लिबास कैसे हो
ऐ नबी! अपनी बीवियों और अपनी साहि़बज़ादियों और मुसलमानों की औ़रतों से फ़रमा दें कि (बाहर निकलते वक़्त) अपने लिबास लंबे करे ,यह इस बात के क़रीबतर है कि वो पहचान ली जाएं फिर उन्हें ईज़ा न दी जाए, और अल्लाह बड़ा बख़्शनेवाला बड़ा रह़म फ़रमानेवाला है।33:59
यहा लिबास के लंबे होने से मुराद बुर्का समझे जाना लगा वो कहते है न कि जिस रंग का चश्मा पहनो चीजे वैसी ही दिखाई देती है और ऐसा ही हुआ अरब के लोगो के लिबास वहा की जलवायु के हिसाब से वैसे ही हुआ करते थे । लेकिन हर सभ्यता मे सभ्य समाज के अपने पैमाने होते है जिस तरह यूरोप और अमेरिका मे औरतों का घुटनो के नीचे तक की लिबास को Decent (सभ्य) समझा जाता है उन औरतों को एहतराम की नज़र से देखा जाता है वही घुटनो के ऊपर जो औरते लिबास पहनी हो उन्हे अलग नजरों से देखा जाता है ।
हर मुल्क की अपनी तहज़ीब , ज़ुबान और खाने पीने के आदाब होते है । खुदा की किताब तमाम दुनिया वालों के लिए उतरी है और खुदा को मालूम था इसलिए उसने अपनी बातो मे किसी मख्सूस मुल्क और ज़ुबान के लोगो को तरजीह नहीं दिया ये एक अलग बात है कि जब कोई रसूल किसी कौम पर आता है तो वो वही ज़ुबान मे बात करता है या खुदा की किताब उतरती है जो उस कौम की ज़ुबान मे होती है । इसके कतई ये मायने नहीं है की पूरी दुनिया उस कल्चर को अपनाए।
मुस्लिम समाज का जो ढांचा नई पीड़ियों के लिए तैयार करवाया जा रहा है वो इन आने वाली पीड़ियों के लिए जी का जंजाल बनेगा । जब ये आने वाली Generation इस्लाम का सही मुताअला करके हम पर तोहमते लगाएगी तो हमारे पास अफसोस और झूठी अकड़ के सिवा कुछ न बचेगा । हमे गहराई से सोचना होगा और उन बुनियादों पर जिसपे ये बकवास गड़ी गई उन्हे दूर करनी होगी और आने वाली नस्लों को सही नज़रिये देने होंगे ।
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