समय जो अपने अंदर अतीत का समुंदर छिपाये होता है, इंसान उसे भुला देता है , वक़्त की इस
अंधी भागा दौड़ मे हम भुला देते है वह सब कुछ जो हमने और उन पीडियों ने या कौम ने सहा जो
उनके साथ गुज़रा था। यथार्थ मे रहना कुछ बुरा नहीं अपितु अतीत से कुछ सीख नही लेना भूल होती है ।
लेकिन जब हम पर कोई त्रासदी आती है , अगर इन त्रासदियों के कारणो पर विचार नहीं किया जाए
तो यह भविष्य के लिए अभिशाप बन जाती है। लेकिन कुछ त्रासदिया हमारे करमा द्वारा होती है,
जीवन का सत्य हम खोजते ज़रूर है परंतु सत्य निष्ठा से शायद नहीं ।
यातनाओ की वजह इंसान के अपने कर्मा है :-
दुखो के सभी कारणो को किसी न किसी कारण से जोड़ हम अपना पल्ला झाड लेते है, लेकिन
सच्चाई हमेशा कड़वी होती है, हमारा अन्तर्मन उस सच को कुबूल नही करने देता, हम स्वयं से भागते नज़र आते है। और अपने कर्मो को ईश्वर के द्वारा किया हुआ बता देते है। भाग्य कि परिभाषा गलत तरीके से परिभाषित करने लगते है। लेकिन ईश्वर इन सब से परे है , ईश्वर कभी किसी पर ज़ुल्म नहीं करता ,
परंतु मनुष्य के अपने कर्म । कुरान मे आता है : –
“अल्लाह किसी पर ज़र्रा बराबर भी ज़ुल्म नहीं करता” । (4: 40)
“तुम लोगो पर जो मुसीबत भी आई है , तुम्हारे अपने हाथो की कमाई से आई है, और बहुत से अपराधो को को वह वैसे ही माफ कर जाता है “ (42:30)
“ वास्तविकता यह है कि अल्लाह लोगो पर ज़ुल्म नहीं करता , लोग खुद ही अपने ऊपर ज़ुल्म करते है “ (10:44)
इतिहास गवाह है कोई आपदा जब तक नहीं आती जब तक इंसान ईश्वर के आदेशो का उल्लंघन नहीं किया या इसे ऐसे कह सकते है की कुदरत के नियमो के विपरीत नहीं गया । कुरान से हमे ज्ञान होता है की जब भी कोई कौम अपने नबी की बातों की अवहेलना करती है , तब ही ईश्वरीय प्रकोप (अज़ाब)आता है ।
“और तेरा रब बस्तियो को विनष्ट करने वाला न था , जब तक कि उनके केंद्र मे एक रसूल न भेज देता जो उनको हमारी आयते सुनाता । और हम बस्तियों को विनष्ट करने वाले न थे जब तक कि उनके रहने वाले ज़ालिम न हो जाते” । कुरान (28:59)
यातनाओ का कारण :-
A) जैसा की हम सभी जानते है कि दुनिया मे जो आफ़ते या प्रकोप आते है , वह मूल रूप से बाढ़ , अकाल , भूकंप, महामारी और युध्द के जरिये से आते रहे ।
कुरान इस सच्चाई पर भी रोशनी देता है :-
कहो “ उसे इसकी सामर्थ्य प्राप्त है कि तुम पर कोई अज़ाब ऊपर से उतार दे या तुम्हारे पाँव के नीचे से ले आए , या तुम्हें गिरोहों मे बाँट करके एक गिरोह को दूसरे गिरोह कि ताकत का मज़ा चखवा दे।“
देखो , हम किस तरह बार बार विभिन्न ढंग से अपनी निशानिया इनके सामने पेश करते है शायद कि ये हक़ीक़त को समझ ले । कुरान (6:65)
यानि खुदा का अज़ाब कौमो पर किसी आसमानी बला के रूप मे , जमीनी आफत के तौर पर या
इंसान का इंसान से युध्द । ये शायद एक कड़वा सच है ।
B)मानव जाति का इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि इंसान अपनी ख्वाहिशों का गुलाम होकर बुराई के कामो मे जब भी आगे रहा , जब उसकी नफ़सीयात ने अपने परो से उड़ान भरी , उसकी बरबादी का दौर वहा से शुरू हुआ। हर दौर मे सत्ता , दौलत और औरत इंसान की नफ़सीयात का मरकज़ रहा ,हकीकत हमारी रूहों के ऊपर ढके पर्दो के उस ओर रही और जिन्हे खुदा ने अक्ल ए सलीम दिया वो फलसफ़ों की तीरंदाज़ी करते रहे और दुनिया को चलाने वाले दौलत , शोहरत और हुकूमत के नशे मे चूर रहे और गफलत ही उनका रहबर बना ।
C)हम सब अपने जीवन मे शांति चाहते है, सुरक्षा चाहते है , सुविधा चाहते है , इस तलाश मे हम
ईश्वर के पास आते है , हमे सुकून हासिल होता है , यह सुकून क्या , मंदिर, मस्जिद या चर्च के
अंदर तक ही सीमित रहती है क्या ?? नहीं मगर हमारे जीवन के तारो को वह क्या चीज़ है जो शांति
प्रदान करता है । उत्तर है ईश्वर के वचन जो हम सुनते है पड़ते है मगर अनुपालन नहीं करते ।
इंसान ईश्वर को किसी भी नाम से पुकारे क्या फर्क पड़ता है , लेकिन उसके बताए तरीको के विपरीत जाने से फर्क पड़ता है , इंसानियत का नुकसान और इसकी भरपाई नहीं की जा सकती । खुदा कहता है कि हमने हर समुदाय के लिए रसूल भेजा । कुरान मे आता है “ हर उम्मत के लिए एक रसूल है ।फिर जब किसी समुदाय के पास उसका रसूल आ जाता है , तो उसका फैसला पूरे न्याय के साथ चुका दिया जाता है और उस पर रत्ती भर ज़ुल्म नहीं किया जाता ।(10:47)
“ अल्लाह एक बस्ती कि मिसाल देता है । वह इतमीनान और निश्चिंतता कि ज़िंदगी बिता रही थी और हर ओर से उसको बहुतायत के साथ रोज़ी पहुच रही थी कि उसने अल्लाह के नेमतों के संबंध मे अकृतज्ञता दिखानी शुरू कर दी ।तब अल्लाह ने उसके निवासियों को उनकी करतूतों का यह मज़ा चखाया कि भूख और डर-खौफ कि मुसीबते उन पर छा गई। उनके पास उनकी अपनी कौम मे से एक रसूल आया । मगर उन्होने उसको झुटला दिया । आखिरकार अज़ाब ने उनको लिया जबकि वो ज़ालिम हो चुके थे। (16 : 112,113)
खुदा ऐसे ही बहुत से उदाहरण कुरान मे पेश करता जिसमे उन कौमो ने अपने रसूल कि बाते नहीं मानी और उन पर भूकंप और आसमानी पत्थरो की बारिश का अज़ाब नाज़िल हुआ और जो नेक लोग थे उन्हे बचा लिया गया ।
आखिरकार जब हमारे फैसले का समय आ गया तो हमने अपनी दयालुता से सालेह को और उन लोगो को जो उसके साथ ईमान लाये थे बचा लिया और उस दिन कि रुसवाई से उनको सुरक्षित रखा । निस्संदेह तेरा रब ही वास्तव मे शक्तिमान और प्रभुत्वशाली है । रहे वे लोग जिनहोने ज़ुल्म किया था , तो एक जोरदार धमाके ने उनको घेर लिया और वे अपनी बस्तियो मे इस तरह अचेत और निष्क्रिय पड़े के पड़े रह गए। कुरान (11:66,67)
फिर जब हमारे फैसले का समय आ पहुचा तो हमने उस बस्ती को तलपट कर दिया और उस पर पकी हुई मिट्टी के पत्थर ताबड़ तोड़ बरसाए। जिनमे से हर पत्थर तेरे रब के यहा चिन्हित था। (11:82)
उन रसूलो कि भाषा , वेषभूषा कुछ भी रही होगी पर उन कि तालीमात (शिक्षाये) वही रही होगी जो खुदा ने बताई । वो रसूल दाऊद , मूसा, ईसा , बुध्द , मुहम्मद या गुरुनानक कोई भी रहे । ये और बात रही इंसान ने वक़्त के इन पैगंबरों और सूफी संतो को ही ईश्वर स्वरूप बना उनकी अर्चना करनी शुरू कर दी।
यह मानव जाति का दुर्भाग्य रहा बहुदेववाद कि कल्पना और उसका अनुपालन समाज के लिए अभिशाप और ज़ुल्म का सबब बना । गौर करने वाली बात ये रही किसी ने ये नहीं कहा की मै ही ईश्वर हु , खुदा हु लेकिन मनुष्य के अंदर के छिपे शैतान ने अपने फ़ायदों के लिए इन्हे ही खुदा तस्लीम कर लिया । खुदा के वजूद के बारे मे इससे बुरा या घिनौना तसव्वुर और क्या हो कि इंसान उसे अपने जैसा समझे। बेशक खुदा पाक है तमाम ऐबों से ।
इंसान इस बात पर कभी गौर नहीं करता कि जिसने उसकी रचना कि क्या वो उसे तकलीफ दे
सकता है ? नहीं मगर जब इंसान हैवानियत के मुक़ाम को पहुच जाए ।
D)खुदा इंसान का इम्तेहान लेता रहता है , लेकिन किसी कौम या समुदाय कि परीक्षा वह तभी लेता है जब वह अपनी बात इन्सानो तक मुकम्मल तौर पर पहुचा दे । इंसानो को वह ज़िंदगी कि ऐश और सहूलते देता है , वह खुश रहे एक खुशहाल ज़िंदगी गुज़ारे लेकिन जब कौमे उसके एहसानों को भुला अपनी मनमरज़िया करने लगती है तो वह चेतावनी के संकेत छोटी छोटी तकलीफ़ों के तौर पर भेजता है :-
जिन लोगो ने अल्लाह के साथ इंकार कि नीति अपना रखी है उन पर उनकी करतूतों के कारण कोई न कोई आफत आती ही रहती है , या उनके घर के करीब कही उतरती है । कुरान (13:31)
कुरान ज़िक्र करता है कौम ए सबा के बारे मे जब उसने उससे नाशुक्री की तो उसने उन पर बाढ़ का अज़ाब भेजा ..
“ सबा के लिए उन के निवास स्थान ही मे एक निशानी थी , दाए और बाए दो बाग । खाओ अपने रब की रोज़ी और उसके प्रति आभार प्रकट करो । भूमि भी अच्छी-सी और रब भी माफ़ करने वाला । मगर वे मुंह मोड़ गए । आखिरकार हमने उन पर बांध तोड़ सैलाब (बाढ़) भेज दिया , और उनके पिछले दो बागो के बदले मे उन्हे दो दूसरे बाग दिये जिनमे कडवे कसैले फल और झाड़ थे और कुछ थोड़ी सी बेरियाँ। यह बदला तो हम ने उन्हे इसलिए दिया कि उन्होने कृतघ्नता दिखाई । ऐसा बदला तो तो हम कृतघ्न (नाशुक्रे) लोगो को ही देते है । कुरान (34:15,16)
ईश्वर चेतावनीया देता है, ताकि मनुष्य ईश्वर के वचनो कि ओर पलटे , अपना आभार प्रकट करे
उसकी अनुकंपाओ पर । लेकिन हम हर बार उन मुसीबतों को प्राकृतिक आपदा या इंसानी गल्ती का नाम दे भुला देते है ।लेकिन मनुष्य अपनी प्रवित्तियों से बाज़ नहीं आता है और वह उन यातनाओ का शिकार होता है जो ईश्वर के अटल कानून का हिस्सा है । वह प्रशंसनीय है , वह महिमावान है और सर्वज्ञाता है ।
निष्कर्ष:-
मै यह समझता हु कि इंसान धर्म , विज्ञान और भौतिक जीवन के बीच की कड़ियो मे उल्झा हुआ है ,
यानि जब वह खुश रहता है तब वो भौतिकता के आवरण मे होता है ,जो सुविधाए उसे हासिल है वह
उन्हे विज्ञान का नाम देता है और फिर जब उस पर मुसीबत आती है तबाही आती है तो ईश्वर और
धर्म को याद करता है ,यह शायद मानव प्रवृत्ति है , इंसान बड़ा ही नाशुक्रा है लेकिन खुदा ऐसा नहीं,वह सब के लिए समान होता है । ईश्वर का कानून सार्वभौमिक है वह कहता है :
“हक़ तो यह है कि जो लोग भी चाहे वे मुसलमान हो या यहूदी या ईसाई या साबी, जो भी अल्लाह (ईश्वर) और आखिरत (कयामत ) के दिन पर ईमान (आस्था) लाएगा और अच्छे कर्म करेगा , उसका बदला उसके रब के पास है और उसके लिए किसी डर और रंज का मौका नहीं है” । कुरान (2;62)
इस हक़ीक़त के बाद वो सारे भ्रम टूट जाते है , जो इंसान को धर्म के नाम पर फूट पैदा करते है , हमारे बीच एक ईश्वर (खुदा) पर और कयामत (पुन्र्रुजीवन) के दिन पर विश्वास करना और इंसानियत के भलाई के कामो को सरअंजाम देना ही हमारा उद्देश्य होना चाहिए।
हमारा मोक्ष ही हमारे जीवन का आनंद है , जो परमेश्वर के आदेशो मे ही निहित है । ईश्वर हमे अपना सान्निध्य प्रदान करे । आमीन
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