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आज से 1400 साल पहले एक शख्स जिसने तमाम अरब ज़मीन पर एक खुदा की बात कर क्रांति पैदा कर दी । जिन्हें लोग हज़रत मुहम्मद के नाम से जानते और पहचानते है जिसे खुदा ने रसूल (सन्देश वाहक) के तौर पर पसंद किया जिन्होंने सारी दुनिया वालो तक खुदा के क़लाम को पहुचाया ।
ये वो दौर था जहा अरब और तमाम दुनिया में खुदा के वजूद के नाम पर बुतपरस्ती (मूर्ति पूजा) अपने पैर पसारने शुरू कर दिए थे हालाँकि अरब एक खुदा के वजूद से वाकिफ़ था, लेकिन फिर भी वो एक से ज़्यादा खुदाओ को अपना रब बना बैठे थे ।
वो उस दौर में, लोगो के दरमियाँ आये जब समाज खुदा के वजूद की झूठी कहानिया पेश कर रहा था । सामाजिक उन्माद अपने चरम पर था ,सामाजिक असहिष्णुता अपने पैर पसारे हुए थी, मक्का में मज़हबी ठेकेदार यानि मुल्ला मज़हब के नाम उलजुलूल रस्म व रिवाजो को मज़हबी इबादत बता रहे थे ।
ऐसे मुश्किल दौर में आपका आना मुआशरे के लिए उस अमृत की तरह हुआ जिसने मुआशरे के ज़हर को ख़त्म किया । आपने मुआशरे को उनकी बुराइयो से आगाह कराया उन्हें एहसास ही नहीं था कि वो कुछ गलत कर रहे है । उन्होंने बताया की मुआशरे की तमाम बुराई की असल जड़ बहुदेववाद (एक से ज़्यादा खुदा की बंदगी ) है , ये ही वो बुराई है जो सारी बुराइयों की माँ है ।
बहुदेववाद क्या है ?
इस शब्द को अरबी में शिर्क से परिभाषित किया गया , जिसके मायने होते है “ एक साथी बनाना “
खुदा के वजूद को समझने के लिए क़ुरान कई आयातों में जोर देता है कि खुदा अपनी ताकतों को किसी भी साथी ( शरीक ) के साथ साझा नहीं करता है।
आप फ़रमा दीजिए : वो अल्लाह एक (ही) है। अल्लाह ही ऐसा है है कि सब उसके मोहताज है , वो किसी का मोहताज नहीं । न उसकी कोई औलाद है और न वो किसी की औलाद है । और उसके जोड़ का कोई भी नहीं । ( 112: 1-4)
उसके अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं; वही जीवित करता और मारता है; तुम्हारा रब और तुम्हारे अगले बाप-दादों का रब है(44:8)
आकाशों और धरती का राज्य अल्लाह ही का है, वही जिलाता है और मारता है। अल्लाह से हटकर न तुम्हारा कोई मित्र है और न सहायक (9:116)
वही आदि है और अन्त भी और वही व्यक्त है और अव्यक्त भी। और वह हर चीज़ को जानता है (57:3)
हज़रत मुहम्मद ने खुदा के वजूद को सही मायनो में उजागर किया । ये वो बुनियाद थी जो इन्सान के अपने वजूद की पहचान है । आप तमाम दुसरे मज़हबो के आलिमो ,पंडितो या पादरियों से इस वजूद के बारे में बात करेंगे तो सबसे पहले वो ये ही कहेंगे खुदा एक है मगर……. ये लफ्ज़ मगर दुनिया के तमाम मज़हबो में बिगाड़ की असल वजह है ।
मै इसे सरल तरीके से आप को समझाने की कोशिश करूँगा । चलिये मै एक सवाल करता हु आपके पास एक घर है जहा आप रहते है , अगर कोई आये और ये कहे ये घर उसका है , तो आप क्या करेंगे आप उससे झगड़ने लगेंगे ?
इसी तरह इस पूरी कायनात को बनाने वाला कोई एक ही है और आप उसका शरीक नहीं बना सकते । कोई उसके शरीक होने का दावा करता है तो यकीन जानिए वो दो खुदा आपस में लड़ने लगेंगे । जैसे कोई खुदा कही बारिश करवाना चाहता है और दूसरा खुदा इस वास्ते राज़ी न हो तो क्या होगा ? यकीनन उनकी लड़ाई के नतीजो से दुनिया तबाहकुन हो जाएगी ।
हमें साइंस ये बताता है कि आसमानों का निज़ाम हमारे निज़ाम से कई बेहतर तरीको से काम कर रहा है जो ये दलील पेश करता है कि कोई एक खुदा है जो इसे कंट्रोल कर रहा है ।
खुदा की खूबियाँ
क़ुरान ने खुदा की ताकतों के बारे में बताया इसमें सबसे अहम् बात ये है कि जो नीचे की आयातो से ज़ाहिर होता है :-
अल्लाह वह है कि उसके सिवा कोई माबूद नहीं , वह जिंदा है ,सबका थामने वाला है , उसे न ऊंघ आती है और न ही नींद , उसी का है जो कुछ आसमानों और ज़मीं में है ।(2: 255)
वह आकाशों और धरती का प्रथमतः पैदा करनेवाला है। वह तो जब किसी काम का निर्णय करता है, तो उसके लिए बस कह देता है कि “हो जा” और वह हो जाता है । (2 :117)
वह परोक्ष और प्रत्यक्ष का ज्ञाता है, महान है, अत्यन्त उच्च है (13:9)
“निश्चय ही अल्लाह आकाशों और धरती के अदृष्ट को जानता है। और अल्लाह देख रहा है जो कुछ तुम करते हो।” (49:18)
निस्संदेह अल्लाह आकाशों और धरती की छिपी बात को जानता है। वह तो सीनो तक की बात जानता है (35:38)
वही हैं जो गर्भाशयों में, जैसा चाहता हैं, तुम्हारा रूप देता हैं। उस प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी के अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं (3:6)
वही है जो जीवन और मृत्यु देता है, और जब वह किसी काम का फ़ैसला करता है, तो उसके लिए बस कह देता है कि ‘हो जा‘ तो वह हो जाता है (40:68)
आकाशों और धरती का राज्य अल्लाह ही का है, और अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है (3:189)
वह कार्य की व्यवस्था करता है आकाश से धरती तक – फिर सारे मामले उसी की तरफ़ लौटते है – एक दिन में, जिसकी माप तुम्हारी गणना के अनुसार एक हज़ार वर्ष है (32:5)
उसी के पास परोक्ष की कुंजियाँ है, जिन्हें उसके सिवा कोई नहीं जानता। जल और थल में जो कुछ है, उसे वह जानता है। और जो पत्ता भी गिरता है, उसे वह निश्चय ही जानता है। और धरती के अँधेरों में कोई दाना हो और कोई भी आर्द्र (गीली) और शुष्क (सूखी) चीज़ हो, निश्चय ही एक स्पष्ट किताब में मौजूद है (6:59)
खुदा ने उन सारी बहसों को जो इन्सान खुदा के वजूद के बारे में करता है उसका भी खंडन क़ुरान में कर दिया और उसे निरी अटकल बताया ।
बहुदेववादी कहेंगे, “यदि अल्लाह चाहता तो न हम साझीदार ठहराते और न हमारे पूर्वज ही; और न हम किसी चीज़ को (बिना अल्लाह के आदेश के) हराम ठहराते।” ऐसे ही उनसे पहले के लोगों ने भी झुठलाया था, यहाँ तक की उन्हें हमारी यातना का मज़ा चखना पड़ा। कहो, “क्या तुम्हारे पास कोई ज्ञान है कि उसे हमारे पास पेश करो? तुम लोग केवल गुमान पर चलते हो और निरे अटकल से काम लेते हो।” (6:148)
मै फिर से कहना चाहूँगा समाज की सभी बुराइयों के पीछे एक खुदा को न मानना ही असल वजह है । खुदा कहते है मुझे दिन रात, उठते बैठते याद किया करो यानि उसकी बनायीं हुई दुनिया में उसके वजूद का जो एहसास छुपा है उसे जाने उसे सराहे ।
सभी धर्मो में एक ईश्वर की कल्पना में बिगाड़ की वजह
लेकिन भ्रष्ट इंसानों ने अपने मज़हब में बिगाड़ पैदा कर दिया । ईसाईयो ने पिता पुत्र एकसमान की सोच से खुदा के सन्देश वाहक यीशु को ही खुदा का बेटा बना दिया ।
इसी तरह मुसलमानों ने क़ुरान के खिलाफ जाकर तमाम सूफियो की मज़ारो को लोगो की मुरादो को पूरा करने वाला मान लिया । इसी तरह हिंदु मज़हब में वेदों के वजूद के ज़रिये से जो एक ईश्वर की कल्पना पेश की गई उसे ठुकरा दिया गया ।
हिंदू धर्म का ब्रह्म सूत्र है: “एकं ब्रह्म, द्वितिया नस्ते नेह नस्ते किंचन” (संस्कृत लिप्यंतरण) “केवल एक ईश्वर है, दूसरा नहीं; बिल्कुल नहीं, बिल्कुल नहीं, कम से कम नहीं।”
“न तस्स प्रतिमा अस्ति” “उनकी कोई समानता नहीं है।” [श्वेताश्वतर उपनिषद 4:19]
वेदों के लगभग सभी श्लोक स्वार्थी लोगों द्वारा अपनी स्वार्थी जरूरतों को पूरा करने के लिए भ्रष्ट कर दिए गए हैं। वेद कहते हैं कि ईश्वर है लेकिन कोई आकार और रूप नहीं है और कोई लिंग भी नहीं है, बस हमें उसकी प्रार्थना करनी है। और हमें हमारे और भगवान के बीच मध्यस्थों की आवश्यकता नहीं है। शिव, ब्रह्मा, रुद्र आदि भगवान के पर्यायवाची नाम हैं और वेदों में इसके कई नाम हैं। और बहुत से स्वार्थी लोगों ने इन नामों को आकार दे दिया।
यह दैनिक भास्कर के 23/05/22 संस्करण में मंदिरों के निर्माण और वेदों में मूर्तियों का कोई ज़िक्र का कोई सबूत नहीं नहीं मिलता है, ऐसा इतिहासकारों की दलीलों के साथ बताया गया है । इसमें बताया गया है कि सबसे पुराने ऋग्वेद में भी किसी मंदिर का ज़िक्र नहीं मिलता ।
ऋग्वेद के मंत्र सूर्य, आकाश और अग्नि जैसे देवताओ की प्रशंसा करते है, जिनके मंदिर नहीं बनाये गए । उस दौर में सिर्फ यज्ञ का प्रचलन था । और करीब 1000 से 500 ईसा पूर्व में पुराण अस्तित्व में आये ,जिनमे ब्रह्मा ,विष्णु और शिव जैसे देवताओ और उनकी देवियों के बारे में लिखा गया ।
ये दलीले इतिहास से सहेजी गई है जिन्हें आप अपनी आस्था के दम पर नकार नहीं सकते है ।
मै आप से ये कहु की आपके दो बाप है तो क्या ये बात आपको गवारा होगी बिलकुल नहीं उसी तरह उस परम परमेश्वर को ये कैसे कुबूल हो कि आप उसे छोड़ उन्हें अपना ईश्वर माने जिनका कोई वजूद ही नहीं है, आप उन्हें अपनी ज़रुरतो के लिए पुकारे जो खुद किसी के हुक्म से चल रहे हो चाहे वो पेड़ हो, सूरज हो, सितारे हो ।
एक उदाहरण लेते है अगरचे आग ईश्वर है तो उसे कोई बुझा नहीं सकना चाहिए लेकिन जब पानी डाला जाये तो वो बुझ जाती है यानि पानी उससे ज़्यादा ताकत रखता है फिर पानी सूरज की रौशनी में भाप क्यों बन जाता है और अगर सूरज उससे बड़ा है तो वो पूरब से निकलकर पश्चिम में डूब क्यों जाता है । ऐसा महसूस होता है वो खुद किसी के हुक्म से घूम रहा है जिससे दिन और रात होते है तो फिर क्यों न उसी परम शक्ति की इबादत किया जाये जो तमाम कायनात को संभाले हुए है ।
ईश्वर की कल्पना इन्सान ने अपनी ख्वाहिश के मुताबिक कर लिया जिसके नतीजे में वो उस मार्ग दर्शन और आशीष से महरूम हो गया जो एक खुदा ने इंसानों के लिए दुनिया में भेजी थी । हमारा मार्ग दर्शन, हमारी खुशिया, हमारी सारी ज़रूरते ,ख्वाहिशे सब उसके कंट्रोल में है ।
हमें कोशिश करनी चाहिए खुदा को जानने और समझने के लिए सच्चे दिल से दुआ करे ¸ कहते है जब दिल से कोई दुआ निकलती है तो वो अर्श ए अज़ीम तक पहुचती है । ऐ हमारे पालनहार हमें सत्य मार्ग दिखा और हमें अपने प्रकोप से बचा ।
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