माहवारी और धर्म की कुरीतियाँ

ये मौजु हालाँकि औरतो से ताल्लुक रखता है लेकिन  इसमें मर्द ने अपनी ज़हनियत का इज़ाफा किया तो ये मामला अब औरतो तक महदूद नहीं रह गया । क्योंकि हर मज़हब में मर्द ही मज़हब का ठेकेदार बना हुआ है चूँकि इस बात को ख़ारिज किया जा सकता है क्योंकि औरतो ने भी मज़हब की समझ हासिल कर लिया लेकिन इसके बावजूद मज़हबी किताबो की इबारतो में पाकी और नापाकी के ज़िक्र की, जो तफसीले बयान किये गए है उनके खिलाफ कहना एक अज़ीम जुर्म समझा जाता है ।

मै यहाँ माहवारी के दौरान इबादते की जा सकती है या नहीं या मंदिर या मस्जिदों में जाया जा सकता है या नहीं ऐसी ही बातो का खुलासा करने की कोशिश कर रहा हु । जैसा की हम सभी जानते है कि माहवारी के दरमियाँ औरतो का किसी भी तरह की इबादत या पूजा में शामिल होना मना नहीं बल्कि हराम है । क्या मै सही कह रहा हु ?? यक़ीनन सारी दुनिया में बहुत से मज़हबो में इसी बात को सही समझा जाता है । ये तरीके मै कहू की Man Made यानि इंसानों के बनाये हुए है या इसे एक शैतानी चाल कहू तो आप को बुरा लगेगा न ? जी हाँ आपको बुरा लगना भी चाहिए ।

मैंने पाया की दुनिया में ज़्यादातर लोग मज़हब को छोड़ बाकि सारे मामले में अपनी अक्ल व ज़हानत इस्तेमाल करते है और बहस और मुबाहिसा करते है लेकिन जब मज़हब की बात आती है तो कहते है कि हमने अपने बाप दादा से ऐसा करते सुना और देखा जबकि क़ुरान कहता है कि “ क्या उनके बाप दादा ने अपनी अक्ल का इस्तेमाल किया था ? यकीनन नहीं किया था और बिना गौर फ़िक्र किये वो follow कर रहे थे हालाँकि उस दौर में जानने और समझने के उतने ज़राए मौजूद नहीं थे लेकिन सोचने के पैसे तब भी नहीं लगते थे… । आज हमारे पास इन्टरनेट, मोबाइल जैसे ज़रिये हासिल है की हम चंद लम्हों में दुनिया के तमाम एक्सपर्ट और माहिरिन से राब्ता कर सकते है जानकारी जुटा सकते है और आप सच्चाई को आसानी से जान सकते है । इसी तरह हर मज़हब में माहवारी का ज़िक्र ज़रूर मिलता है और खुदा ने जब इन्सान को बनाया है तो उसने अपनी किताबो में ज़िन्दगी के तमाम पहलुओ को बयान किया । हम कोशिश करेंगे कि उन सभी धर्मो की बातो को मुख्तसर में जानने की जिसमे माहवारी के दौरान क्या करना चाहिए और क्या नहीं ।

पहले हम यहूदियों के बारे मे बात करते है । उनके यहाँ माहवारी के लिए Zavah लफ्ज़ इस्तेमाल किया जाता है जिसमे उसे हर तरह की इबादत करने की मनाही है यहाँ तक की मर्द को उसे छूने तक को मना किया गया है और इस तरह के separation को Niddah कहा गया ।

“In the third book of the Pentateuch or Torah and particularly in the Code of legal purity (or Provisions for clean and unclean) of the Mosaic Law (Leviticus 11:1-15:33), it is stated that a woman undergoing menstruation is perceived as unclean for seven days and whoever touches her shall be unclean until evening “

( पेंटाटेच या तोरा की तीसरी पुस्तक में और विशेष रूप से मोज़ेक कानून (लैव्यव्यवस्था 11:1-15:33) की कानूनी शुद्धता (या स्वच्छ और अशुद्ध के प्रावधान) की संहिता में, यह कहा गया है कि मासिक धर्म से गुजरने वाली महिला को माना जाता है जैसे सात दिन तक अशुद्ध रहे, और जो कोई उसे छूए वह शाम तक अशुद्ध रहे। )

बिलकुल इसी तरह बाइबिल में भी औरत को Unclean बताया गया ।

Leviticus 15:19-24

19.” Whenever a woman has her menstrual period, she will be ceremonially unclean for seven days. Anyone who touches her during that time will be unclean until evening.

20.  Anything on which the woman lies or sits during the time of her period will be unclean.

21.  If any of you touch her bed, you must wash your clothes and bathe yourself in water, and you will remain unclean until evening.

22. If you touch any object she has sat on, you must wash your clothes and bathe yourself in water, and you will remain unclean until evening.

23. This includes her bed or any other object she has sat on; you will be unclean until evening if you touch it.

24. If a man has sexual intercourse with her and her blood touches him, her menstrual impurity will be transmitted to him. He will remain unclean for seven days, and any bed on which he lies will be unclean”.

(19. जब भी किसी औरत को माहवारी होती है, तो वह सात दिनों तक विधिपूर्वक अशुद्ध रहेगी। उस समय जो कोई उसे छूएगा वह शाम तक अशुद्ध रहेगा। 20. माहवारी के दरमियाँ जिस वस्तु पर औरत लेटे या बैठी हो वह सब अशुद्ध ठहरे। 21. यदि तुम में से कोई उसके बिछौने को छूए, तो अपने कपडे धोकर पानी से नहाना, और वो शाम तक अशुद्ध रहेगा। 22. यदि तू किसी वस्तु को जिस पर वह बैठी हो छूए, तो अपने कपडे धोकर पानी से नहाना , और वो शाम तक अशुद्ध रहेगा। 23. इसमें उसका बिछौना वा और कोई वस्तु जिस पर वह बैठी है, सम्मिलित है; यदि तू उसको छूए तो शाम तक अशुद्ध रहेगा। 24. यदि कोई पुरुष उसके साथ सम्बन्ध बनाये , और उसका खून उसे छू जाए, तो उसका मासिक धर्म अशुद्ध हो जाएगा। वह सात दिन तक अशुद्ध रहेगा, और जिस बिछौने पर वह सोए वह सब अशुद्ध ठहरे।)

इसी तरह हिन्दू शास्त्र के मनुस्मृति में कहा गया :-

41. For the wisdom, the energy, the strength, the sight, and the vitality of a man who approaches a woman covered with menstrual excretions, utterly perish. 42. If he avoids her, while she is in that condition, his wisdom, energy, strength, sight, and vitality will increase.

( क्‍योंकि जो आदमी रजस्वला मल से ढकी हुई औरत के पास जाता है, उसकी बुद्धि, बल, बल, दृष्टि, और जीवन शक्ति पूरी रीति से नाश हो जाती है। 42. यदि वह उससे दूर रहता है, जबकि वह उस स्थिति में है, तो उसकी बुद्धि, ऊर्जा, शक्ति, दृष्टि और जीवन शक्ति बढ़ जाएगी )

इसी तरह वेदों में भी माहवारी का ज़िक्र मिलता है :

The four Vedas never state anywhere that a woman’s body is impure or that she cannot do poojas during menstruation. Prohibiting women from entering temples and castigating them as impure is squarely against the teachings of the Vedas.

चारों वेदों में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि एक महिला का शरीर अशुद्ध है या वह मासिक धर्म के दौरान पूजा नहीं कर सकती है। महिलाओं को मंदिरों में प्रवेश करने से रोकना और उन्हें अपवित्र कहना वेदों की शिक्षाओं के विरुद्ध है।

हालाँकि ये एक controversy है लेकिन हिन्दू इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते उनके पास वेदों के ऊपर भी कुछ किताबे है शायद।

यह बाते पुराने समय में अनुकूल हो सकती थी जब औरतो के पास टैम्पोन और पैड जैसी उपयोगिता की चीज़े हासिल नहीं थी।

इसी वजह से प्राचीन काल में माहवारी के उन दिनों में अक्सर औरतो को अलग-अलग झोंपड़ियों में रहने के लिए मजबूर किया जाता था।

दुर्भाग्य से नेपाल जैसी जगहों पर यह प्रथा आज भी कायम है: माहवारी वाली महिलाओं को ऐसी ही झोपड़ियों में रहने के लिए मजबूर किया जाता है।

बहरहाल हम अगर सही तरीके से analysis करे तो एक बात समझ आ रही है वो ये कि मज़हब की किताबो में माहवारी को नापाकी समझा गया और इस नापाकी को मज़हबी इबादात से दुरी की वजह समझा गया ।

चलिए अब जानने की कोशिश करते है कि इस्लाम में या ये कहे कि क़ुरान में क्या कहा गया :-

2:222 और आप से ह़ैज़ (अय्यामे माहवारी) की निस्बत सवाल करते हैं, फ़रमा दें, वो नजासत है, सो तुम ह़ैज़ के दिनों में औ़रतों से कनारा-कश रहा करो, और जब तक वो पाक न हो जाएं उनके क़रीब न जाया करो, और जब वो खूब पाक हो जाएं तो जिस रास्ते से अल्लाह ने तुम्हें इजाज़त दी है उनके पास जाया करो, बेशक अल्लाह बहुत तौबा करनेवालों से मुह़ब्बत फ़रमाता है और खू़ब पाकीज़गी इख़्तियार करनेवालों से मुह़ब्बत फ़रमाता है।

जैसा कि हम देखते हैं कि इस आयत में न केवल औरते को मुखातिब किया गया है बल्कि ये मर्दों को भी मुखातिब करती है । अगरचे औरतो को हैज़ के दौरान इबादत करने से रोकना होता तो इसका ख़िताब औरतो से होता । ये आयत औरतो को हैज़ के दौरान मज़हबी फर्जो की अदायगी से मना नहीं करती है , बल्कि ऐसे औकात में जिस्मानी ताल्लुकात को महदूद करती है। इस आयत का पहला हिस्सा हमें सिखाता है कि माहवारी के दौरान जिंसी ताल्लुक रखना नुकसानदेह है।

अगर आप किसी डाक्टर चाहे वो मुसलमान न हो आप उससे पीरियड के दौरान जिंसी ताल्लुकात बनाने के बारे में पूछेंगे तो वो आपको बताएगा की ये मर्द और औरत दोनों के लिए नुकसानदेह है।

अब आइये इस आयत के दुसरे हिस्से पर नज़र डालते है, जो ये बताती है “वो पीरियड से छुटकारा पाने “ के बाद के दौर से ताल्लुक रखती है। फिर हमें बताया जाता है कि मर्द, औरतो के साथ  “खुदा के बनाये हुए तरीके से “ जिंसी ताल्लुक कायम किया जाये । क्या खुदा को हमें “ खुदा के बताये हुए तरीके “ के बारे में बताने की ज़रूरत होगी , अगर कोई दूसरा तरीका नहीं था जिससे हमबिस्तरी की जाये ? नहीं, एक और तरीका है जो खुदा को मंज़ूर नहीं है। यही वजह है की आयत यह कहकर ख़त्म होती है कि ” खुदा पाक रहने वालो से मोहब्बत करता है ” ।

अगर हमने अभी तक बात नहीं समझी है तो अगली आयत हमें तुरंत याद दिलाने के लिए है कि कौन सा तरीका मंज़ूर है ।ये कहकर शुरू होता है “ तुम्हारी औरते तुम्हारी वंश की वाहक है “ एक ही तरीका है कि औरत मर्दों की नस्ल का बोझ उठा सकती है,ये आयत मर्दों को याद दिलाने के लिए दोबारह जारी है और वो बताती है कि आप इस विशेष अधिकार का पूरा मज़ा ले सकते है “ जब तक की आप नेकी की राह को बरक़रार रखे ।

2:223- तुम्हारी औ़रतें तुम्हारी खेतियां हैं पस तुम अपनी खेतियों जैसे चाहो आओ, और अपने लिए आइन्दा का कुछ सामान कर लो और तक़वा इख़्तियार करो और जान लो कि तुम उसके ह़ुज़ूर पेश होने वाले हो, और (ऐ ह़बीब!) आप अहले ईमान को खुश ख़बरी सुना दें (कि अल्लाह के हुज़ूर उनकी पेशी बेहतर रहेगी)।

सिर्फ वो ही हालात जो हमें खुदा की नज़र में नापाक बनाती है जब नमाज़ अदा करने की बात आती है तो क़ुरान की 5:6 और 4:43 में ज़िक्र किया गया है इन में से किसी आयत में यह नहीं कहा गया कि माहवारी इन हालात में से एक है, हमें सिर्फ नमाज़ के लिए अपने आपको साफ करने के लिए सिर्फ वजू करना है अलबत्ता ये गलतफहमी है की माहवारी से वजू टूट जाता है लेकिन क़ुरान में इसकी कोई ताइद नहीं है आइये क़ुरान की दो आयतों (4:43 और 5:6) का मुताअला करे जो हमें बताती है कि वो क्या काम है जो वजू को तोडती है ।

“ ऐ ईमानवालो! तुम नशे की ह़ालत में नमाज़ के क़रीब मत जाओ यहां तक कि तुम वो बात समझने लगो जो कहते हो और न ह़ालते जनाबत में (नमाज़ के क़रीब जाओ) ता आंकि तुम ग़ुस्ल कर लो सिवाए इसके कि तुम सफ़र में हो या रास्ता तय कर रहे हो, और अगर तुम बीमार हो या सफ़र में तुम में से कोई क़ज़ाए ह़ाजत से लौटे या तुम ने (अपनी) औ़रतों से मुबाशिरत की हो फिर तुम पानी न पा सको तो तुम पाक मिट्टी से तयम्मुम कर लो पस अपने चेहरों और अपने हाथों पर मसह़ कर लिया करो, बेशक अल्लाह माफ़ फ़रमाने बहुत बख़्शनेवाला है।“ (4:43)

“ ऐ ईमानवालो! जब (तुम्हारा) नमाज़ के लिए खड़े (होने का इरादा) हो तो 1) अपने चेहरों को धोना  2) अपने हाथों को कोहनियों समेत धो लो 3) अपने सरों का मसह करो 4) अपने पॉंव (भी) टख़्नों समेत (घो लो), और अगर तुम ह़ालते जनाबत में हो तो (नहा कर) खू़ब पाक हो जाओ और अगर तुम बीमार हो या सफ़र में हो या तुमसे कोई रफ़्ए़ ह़ाजत ( पेशाब, पाखाना या गैस) से (फ़ारिग हो कर) आया हो या तुमने औरतों से जिस्मानी ताल्लुकात बनाया हो फिर तुम पानी न पाओ तो (अंदरीं सूरत) पाक मिट्टी से तयम्मुम कर लिया करो। पस (तयम्मुम यह है कि) उस (पाक मिट्टी) से अपने चेहरों और अपने (पूरे) हाथों का मसह़ कर लो। अल्लाह नहीं चाहता कि वो तुम्हारे ऊपर किसी क़िसम की सख़्ती करे लेकिन वो (यह) चाहता है कि तुम्हें पाक कर दे और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दे ताकि तुम शुक्र गुज़ार बन जाओ। (5:6)

इस बात को नोट करे कि ये आयत मर्दों और औरतो दोनों पर लागु होती है (इसकी शुरुआत “ ऐ ईमान वालो “ से होती है ) इसका मतलब ये है कि मर्द और औरत दोनों को सिर्फ नमाज़ की पाबन्दी के लिए वजू करना होगा , ऊपर दिए गयी आयत से हम ये भी जानते है कि वजू ख़ारिज होना शौच और पाचन दोनों के लिए होना चाहिए, इस के मुताबिक माहवारी से वजू नही टूटता है ।

हमें अपने आप से सवाल करना चाहिए कि हम ये क्यों कुबूल नहीं कर सकते कि औरते माहवारी के दौरान नमाज़ या रोज़ा वगैरह की मज़हबी फर्जो की पाबन्दी कर सकती है । क्या ये खुदा के कानून है जो ऐसी पाबंदिया को थोपती है ? या ये मज़हबी उलेमाओ की तरफ से कायम करदा बेबुनियाद पाबंदिया है या गलत मज़हबी कानून जो हमारे पूर्वजो से विरासत में मिले है जिनका कोई कुरानी वजूद नहीं है । हमें जो भी जवाब मिलता है उस पर खुदा का कोई support नहीं है । औरतो की हैज़ अल्लाह की बनाई हुई है । औरतो को उन समयों के दौरान में खुदा की इबादत करने से क्यों रोका जाये जो बिलकुल इस तरह है जैसा की उसने बनाया है जिस पर उन औरतो का कोई कंट्रोल नहीं है ?

मुझे कभी यु लगता है की मर्द खुद को औरत से ज़्यादा पाकीज़ा बताने की चाहत में उसे जहन्नुम की दीवार के सामने खड़ा कर दे रहा है । आप पूछेंगे वो कैसे जब एक औरत महीने में सात दिन नमाज़ से गाफिल होती है तो साल में 84 दिनों वो खुदा की फ़र्ज़ इबादत से महरूम हो जाती है और रमजान के अज़ीम महीनो के सात रोजो से भी । जो उसे नफिल के बतौर दुसरे दिनों में पूरा करती है । जबकि क़ुरान कहता है :

अल-बक़रा (Al-Baqarah):183-184 – ऐ ईमान लानेवालो! तुमपर रोज़े अनिवार्य किए गए, जिस प्रकार तुमसे पहले के लोगों पर किए गए थे, ताकि तुम डर रखनेवाले बन जाओ । कुछ ही दिन तो रखने है ये रोज़े, इसपर भी तुममें कोई बीमार हो, या सफ़र में हो तो दूसरे दिनों में संख्या पूरी कर ले। 

खुदा ने जब ये बात कही तो माहवारी का ज़िक्र क्यों नहीं किया ? क़ुरान ने कहा की खुदा हर बात को खोल खोलकर बयान करता है चाहे वो कितनी ही छोटी बात हो।

“ क्या मै कानून के लिए खुदा के अलावा कोई दुसरे ज़रिये की तलब करू , जबकि उन्होंने ये तफ्सीली किताब भेजी है ?…. तुम्हारे रब का कलम मुकम्मल है ,सच्चाई और इंसाफ में “। 6:114

ये वाज़ेह आयत इस बात की दलील पेश करती है की खुदा की किताब में कोई बात छुटी नहीं ये अलग बात है कि मुल्लाओ को इस तरह की आयते और इसके मायने समझ नहीं आते और वो खुदा की किताब के अलावा दीगर किताबो में अपने मन की बात ढूंढते है ।

मुझे रोजो के दरमियाँ औरतो के रोज़े न रखने की बात अब तक समझ नहीं आती है क्योंकि रोज़ा का ताल्लुक तो खाने पीने से है न की नमाज़ पड़ने के लिए उसे वजू तक करना पड़े । और जिन साहबो को ये लगता है कि रोजो में जिंसी या शहवत जैसी कोई चीज़ माहवारी भी है तो वो जान ले ये गुमान कम अकली और वाहियात है ।

जब इस तरह की बाते आती है तो हज के दौरान जब किसी औरत को माहवारी आ जाये तो उसका हज हो जायेगा क्या ? इस बात की दलील में वो ये कहते है की नमाज़ों को छोड़कर बाकि सारे अरकान अदा हो जायेंगे । जब औरत नापाक है तो खुदा के उस अज़ीम घर से उसे तुरंत बाहर कर दिया जाना चाहिए । ये तो तुम्हारे अपने बनाये कानून के हिसाब से ऐसा ही होना चाहिए तो ऐसा क्यों नहीं करते ? रब तआला ने क़ुरान में हज के अरकान में ये बाते क्यों नहीं बताई ? ये तो तुम्हारी बताई हुई दलीलों में एक अज़ीम दलील है लेकिन जिसे खुदा ने ज़िक्र करना ज़रूरी नहीं समझा । ये साफ़गोइया इंसानी फ़िक्र की कमअक्ली और तंग नज़री का बुरा तजुर्बा पेश करती है । क़ुरान ने बनी इजराइल के बारे में कहा कि :

अल-जुमुआ (Al-Jumu`ah):5 – जिन लोगों पर तोरात का बोझ डाला गया, किन्तु उन्होंने उसे न उठाया, उनकी मिसाल उस गधे की-सी है जो किताबे लादे हुए हो। बहुत ही बुरी मिसाल है उन लोगों की जिन्होंने अल्लाह की आयतों को झुठला दिया। अल्लाह ज़ालिमों को सीधा मार्ग नहीं दिखाया करता ।

मुसलमानों में भी बहुत सी हलाल चीजों को क़ुरान की तालीमात के खिलाफ होते हुए भी हराम करार दिया गया है और वो सारी दलीले जिस तरह बनी इजराइल ने तोरात के अलावा भी कई किताबे बना ली थी जिसे वो तोरात के अलावा तरजीह देते थे जिसे खुदा ने गधे की मिसाल से पेश किया बिलकुल इसी तरह उम्मते मुहम्मदी में भी ऐसा ही हुआ और वो किताबे इस्लामी बुनियाद का अहम् हिस्सा बन गई और मुआशरे की बिगाड़ और मुसलमानों की जहन्नम का सीधा रास्ता हो गई ।

ये कोशिश उन अक्लमंद लोगो के लिए है जो अपने कान, आँख और दिमाग खुले रखते है वरना “शैतान तो तुम्हे वहा से देख रहा है जहा से तुम उसे नहीं देख सकते” ऐसा क़ुरान कहता है इंसानों के बारे में और यकीनन वो ही इन्सान का सबसे बड़ा और खुला दुश्मन है ।

मै उम्मीद करता हु कि इस तरह की साफ साफ हुज्ज्तो के बाद अक्ल वालो की क़ुरान पर गौर करने और समझने की आदत में इज़ाफा होगा और ये हिदायत और खुदा की रहमत की वजह बनेगी ।

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