सच्ची ख़ुशी का ताल्लुक एक खुदा पर ईमान लाने से है । ये एक ऐसा वाक्य है जो हर दौर में एक जैसा ही था और रहेगा क्योकि ये खुदा का वादा है जो कभी बदलता नहीं है ।
सुनो! जो अल्लाह के दोस्त हैं, जो ईमान लाए और जिन्होंने तक़वा [ परहेज़गारी] का रवैया अपनाया, उनके लिये किसी डर और दुःख का मौक़ा नहीं है। दुनिया और आख़िरत दोनों ज़िन्दगियों में उनके लिये ख़ुशख़बरी ही ख़ुशख़बरी है। अल्लाह की बातें बदल नहीं सकतीं। यही बड़ी कामयाबी है। (10:62-64)
इसके बरख़िलाफ़ जो लोग तागूत (बड़े सरकश) की बन्दगी से बचे और अल्लाह की तरफ़ पलट आए उनके लिये ख़ुशख़बरी है। इसलिए (ऐ नबी) ख़ुशख़बरी दे दो। (39:17)
खुदा के आगे सिर झुका के हम ख़ुशी कैसे हासिल कर सकते है ? इस ज़िन्दगी में हमारी तरजीह ये होना चाहिए कि हम से खुदा की तवक्को को पूरी किया जाये । ये जानने के लिए की खुदा हमसे क्या तवक्को रखता है । हमें यहाँ उस दुनिया में अपने मकसद को जानना होगा ।
मैंने जिन्न और इन्सानों को इसके सिवा किसी काम के लिये पैदा नहीं किया है कि वो मेरी बन्दगी करें।(51-56)
यह जानते हुए कि ख़ुदा ने हमें केवल उसकी इबादत करने के लिए बनाया है, हमें ऐसी ज़िन्दगी जीना है जो ख़ुदा को खुश करे। हम जो कहते हैं, उससे अधिक उसे जो भाता है, वह है उसके एहकाम को पूरा करने के हमारे हक़ीकी इरादे और काम। यह ख्याल कि ख़ुदा के कानूनों को मानना ही ख़ुशी का ज़रिया है, नया नहीं है। हम इस ख्याल को बाइबल, नीतिवचन की पुस्तक में देख सकते हैं:
जहां दर्शन नहीं होता, वहां प्रजा निरंकुश होती है, परन्तु धन्य है वह जो व्यवस्था को रखता है। — नीतिवचन 29:18
जब ख़ुदा के एहकाम को मान करके उसे खुश करना हमारे जिंदगी का सबसे अहम् पहलू बन जाता है, तब ख़ुदा हमारे लिए सब कुछ अच्छा कर देगा। यह ख़ुदा का क़लाम है।
अल्लाह ने वादा किया है तुममें से उन लोगों के साथ जो ईमान लाएँ और अच्छे काम करें कि वो उनको उसी तरह ज़मीन में ख़लीफ़ा बनाएगा जिस तरह उनसे पहले गुज़रे हुए लोगों को बना चुका है। उनके लिये उनके उस दीन को मज़बूत बुनियादों पर क़ायम कर देगा जिसे अल्लाह ने उनके लिये पसन्द किया है, और उनकी (मौजूदा) डर की हालत को अमन से बदल देगा। बस वो मेरी बन्दगी करें और मेरे साथ किसी को शरीक न । और जो उसके बाद कुफ़्र करे तो ऐसे ही लोग नाफ़रमान हैं। (24:55)
यह खुदा का वादा है – ज़मीं पर हुक्म चलाने वाले का – क्योंकि हम खुदा के अलावा किसी भी बुत को कायम किये बगैर सिर्फ उसकी इबादत करते है , अगर हम ज़मीं पर बादशाह और मलिका बनना चाहते है तो हमें हर मौके पे अपने आमाल और इरादों का बहुत एहतियात से जायज़ा लेना होगा
हमें जो भी मसले दरपेश है , हमें उससे सबक लेने की कोशिश करनी चाहिए , अगर हम मुखलिस है तो खुदा मुख्तलिफ आज़माइश के ज़रिये अपने साथ हमारे ताल्लुकात में हमारी हिफाज़त करेगा । अय्यूब जो क़ुरान के मुताबिक बहुत आज़माया गया था , एक ऐसा नुक्ते नज़र है जो हमें बाइबिल से अय्यूब की किताब में कहा गया है ।
देखो, वह मनुष्य कितना धन्य है जिसे ख़ुदा डांटता है, सो सर्वशक्तिमान की शिक्षा को तुच्छ मत समझो। — अय्यूब 5:17
आयत इस बात की वजाहत करती है की हमें चोट लग सकती है , लेकिन शिफा खुदा के हाथो में है और वही है जो हमारी किसी भी मुसीबत से बचा सकता है ।
इस किस्म की ज़हनियत हमें उन आज़माइशो से सीखने में मदद देगी जो खुद खुदा के साथ अच्छा रिश्ता बरक़रार रखने के लिए वो हमें भेजता है ।
हमें इस दुनिया की माद्दी चीजों के तरफ से आज़माया जा सकता है,ये बहुत फितरी बात है कि हम इस दुनिया की माद्दी चीजों के तरफ रागिब होते है,लेकिन हम जानते है की यह सिर्फ वह नेमतें हैं जो खुदा हमें इस जिंदगी में देता है अगर हम इसे सही नज़रिए में देखे तो हम खुदा के साथ खुद अपने ताल्लुकात को बेहतर बनायेंगे । यहाँ तक की सुलेमान को उसकी तमाम दौलत के साथ खुदा ने उसे अपने घोड़ो के साथ आज़माया (38:31-34) । उसने महसूस किया की उसने उसे खुदा की इबादत करने से हटा दिया है । वो खुदा की मर्ज़ी के ताबेअ हो गया और उसे और भी ज़्यादा दौलत हासिल हुई ।
और जान रखो कि तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद हक़ीक़त में आज़माइश का सामान हैं और अल्लाह के पास अज्र [ बदला] देने के लिये बहुत कुछ है। (8:28)
माद्दी चीजों का पीछा करना या “जोनेसेस के साथ बने रहना” दुखी रहने के सबसे आसान तरीकों में से एक है । दुसरो से बेहतर चीज़े रखने का मुस्तकिल मुआज़रा और अज्म हमारी तवज्जो बिलकुल उसी पर मर्कुज़ रखता है- दूसरा- ना की खुदा पर , ज़रा सोचे अगर ख़ुशी का सही पैमाना यही था तो जब कोई आफत किसी के माल को हम से ज़्यादा या बेहतर चीजों के साथ ले जाती है तो उससे हमारी ख़ुशी में इज़ाफा होता ,कितना खौफनाक ख्याल है लेकिन क़ुरान बताता है की ऐसे लोग भी है।
तुम्हारा भला होता है तो इनको बुरा मालूम होता है, और तुमपर कोई मुसीबत आती है तो ये ख़ुश होते हैं। मगर इनकी कोई चाल तुम्हारे ख़िलाफ़ कामयाब नहीं हो सकती, शर्त ये है कि तुम सब्र से काम लो और अल्लाह से डरकर काम करते रहो। जो कुछ ये कर रहे हैं, अल्लाह उस पर हावी है। (3:120)
खुशी इस जिंदगी में कामयाबी के बराबर नहीं है,और उससे हम आज़माइश में पड़ सकते है , अगर ज़िन्दगी में हमारी हैसियत ख़ुशी का पैमाना होती तो हममें से सिर्फ अमीर तरीन ,मशहूर या ताकतवर ही खुश होते , लेकिन हम जानते है की ये सच नहीं है । क़ुरान में दिए गए बागात वाले दो आदमियों की कहानी (18:32-44) में एक आदमी वाज़ेह तौर पर कहता है की वो दुसरे से ज़्यादा खुशहाल है लेकिन उस ने अपनी कामयाबी को खुदा से मंसूब नहीं किया । वो उदास हो गया और उसने जो कुछ किया वो भी ज़ाया हो गया । जबकि दुसरे शख्स ने महसूस किया की कामयाबी का असल ज़रिया खुदा है हालाँकि उसके पास शुरुआत करने के लिए बहुत कम था ।
लोगों के लिये मनपसंद चीज़ें – औरतें, औलाद, सोने-चाँदी के ढेर, चुने हुए घोड़े, मवेशी और खेती की ज़मीनें-बड़ी सुहावनी बना दी गई हैं, मगर ये सब दुनिया के कुछ दिनों की ज़िन्दगी के सामान हैं। हक़ीक़त में जो बेहतर ठिकाना है, वो तो अल्लाह के पास है। (3:14)
इस जिंदगी में हमारा मकसद क्या है? क्या यह तालीम हासिल करना है, फिर नौकरी करना है, फिर एक बड़ा घर है, शादी करना है, बच्चे पैदा करना है, बैंक में पैसा लगाना है, एक अच्छी रिटायरमेंट की जगह ढूंढना है और अपनी मौत का इंतजार करना है? क्या यही हमारी ज़िन्दगी का मकसद हैं?
ख़ुदा चाहता है कि हम उसके साथ अपने ताल्लुकात को पूरा करे । वह यकीनी तौर पर हमारे कमजोर पहलुओ के ज़रिये से हमारा इम्तेहान लेगा और हमें यह दिखाने की कोशिश करेगा कि हमारी कोताही क्या हैं ताकि हम उनसे सीख सकें। ख़ुदा कुरान में कहते हैं कि अगर हम इस तरह की चीजों की तलाश कर रहे हैं, तो ख़ुदा उन्हें इस दुनिया में हमें देंगे। लेकिन अगर हम आखिरत में कामयाबी की तलाश करते हैं, तो ख़ुदा हमें इस जिंदगी और आख़िरत दोनों में अता करेंगे ।
जो कोई आख़िरत की खेती चाहता है, उसकी खेती को हम बढ़ाते हैं और जो दुनिया की खेती चाहता है, उसे दुनिया ही में से देते हैं, मगर आख़िरत में उसका कोई हिस्सा नहीं है।(42:20)
यह पता करने के लिए कि क्या हम केवल ख़ुदा को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं, हमें यह जाँचने की ज़रूरत है कि हम क्या करने की कोशिश कर रहे हैं और कोशिश करने के पीछे के मक़सद क्या हैं। क्या ख़ुदा हमारे जिंदगी में सबसे अहम् है? क्या हम अपनी पांचो नमाज़ों को पूरी करने की कोशिश करते हैं? क्या हम खुद से अपनी ज़कात देते हैं? क्या हम जुमे की नमाज़ में शामिल होने और कुरान का मुताअला करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं? क्या हम ईमान वालो को खुश करने या खुदा को खुश करने के लिए खुद को उनके साथ रहने के लिए पाबंद करते हैं?
क्या हम ईमानवालो के चारों ओर ख़ुदा के कानूनों को अमल करने वास्ते सतर्क है ,या सिर्फ उनको दुसरे लोगों के साथ तोड़ने के लिए ? हम 100% वक्त ख़ुदा के साथ हैं चाहे हम किसी और के साथ हों। क्या हमारे आमाल को अक्सर ख़ुदा के एहकाम के बहाने और अपवादों के साथ जायज़ ठहराया जाना चाहिए? क्या हम दूसरों में दया, सहिष्णुता और इंसाफ को बढ़ावा देने के लिए बात करते हैं,खुद अपने आप पर अमल किये बगैर ?
क्या हम दूसरों से इसलिए बात करते हैं क्योंकि हम ईमानदारी से अपने ख्यालों और समझ को उनके साथ साझा करना चाहते हैं या क्या हम उन्हें सिर्फ दिखावा करना चाहते हैं? क्या हम अपने आसपास के लोगों के साथ सीखने की कोशिश करने के लिए ख्यालात पर गौर करते हैं या सिर्फ अपने इल्म के साथ उन्हें नीचे रखने के लिए? हम किसको सबसे ज्यादा मुतास्सिर करने की कोशिश करते हैं – हमारा जिंदगीसाथी, हमारा परिवार, हमारे दोस्त, हमारे सहकर्मी, हमारा बॉस? क्या हमारे पास हकीक़त में चीजें क्रम में हैं और ख़ुदा को अपनी प्राथमिकता के रूप में स्थापित करने का कोशिश करते हैं?
और जो मुनाफ़िक़ ईमानवालों को छोड़कर कुफ़्र करनेवालों को अपना साथी बनाते हैं उन्हें ख़ुशख़बरी सुना दो कि उनके लिये दर्दनाक सज़ा तैयार है। क्या ये लोग इज़्ज़त की चाह में उनके पास जाते हैं? हालाँकि इज़्ज़त तो सारी की सारी अल्लाह ही के लिये है। (4:138-139)
ऐ आदम की औलाद ! मैंने तुमपर लिबास उतारा है कि तुम्हारे जिस्म के क़ाबिले-शर्म हिस्सों को ढाँके और तुम्हारे लिये जिस्म की हिफ़ाज़त और ज़ीनत का ज़रिआ भी हो, और बेहतरीन लिबास तक़वा का लिबास है। ये अल्लाह की निशानियों में से एक निशानी है, शायद कि लोग इससे सबक़ लें।(7:26)
ख़ुदा लोगों के मन और दिल को कंट्रोल करता है। वह वह है जो हमारे और हमारे आस-पास के लोगों के बीच प्यार, सम्मान और समझ रखता है। लेकिन हमें पहले ख़ुदा को अपनी प्राथमिकता बनानी होगी, धर्मी होने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी और उन कामों को करना होगा जो दूसरों से पहले उसे खुश करते हैं।
हम सब इससे वाकिफ़ है जिसे आम तौर पर “ दरमियानी ज़िन्दगी के संकट ”के नाम से जाना जाता है । जो लोग इस ज़िन्दगी को तरजीह देते है उनकी ख़ुशी में में इज़ाफा होता नज़र आता है ।
40 वर्ष की उम्र तक, जिसके बाद यह लगातार घटने लगता है। जैसे ही उन्हें पता चलता है कि जिंदगी उनके पास से गुजर चुका है, वे पछताते हैं। ईमानवालो के लिए, जैसे-जैसे वे बड़े होते जाते हैं, उन्हें लगता है कि वे ख़ुदा के करीब आ रहे हैं। यही हकीकी जिंदगी है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम बूढ़े होने पर जिस्मानी तौर से कैसा महसूस करते हैं, क्योंकि हर मिनट हमें ख़ुदा के करीब लाता है, जो हमारा आखिरी मकसद है। जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, हम अधिक खुश होते हैं अगर हम सच्चे है और हिदायत की पाबन्दी करते है ।
जिस रोज़ अल्लाह उन सब लोगों को घेर कर जमा करेगा, उस रोज़ वो जिन्नों से ख़िताब करके फ़रमाएगा कि “ऐ जिन्नों के गरोह, तुमने तो इनसानी बिरादरी पर ख़ूब हाथ साफ़ किया।” इनसानों में से जो उनके साथी थे वो कहेंगे कि परवरदिगार, हम में से हर एक ने दूसरे को ख़ूब इस्तेमाल किया है, और अब हम उस वक़्त पर आ पहुँचे हैं जो तूने हमारे लिये मुक़र्रर कर दिया था।” अल्लाह कहेगा, “अच्छा, अब आग तुम्हारा ठिकाना है, इसमें तुम हमेशा रहोगे।” उससे बचेंगे सिर्फ़ वही लोग जिन्हें अल्लाह बचाना चाहेगा, बेशक तुम्हारा रब सूझ-बूझवाला और जाननेवाला है। (6:128)
हमारी खुशी इस बात पर निर्भर करती है कि हम इस जिंदगी में अपने मक्सद कैसे तय करते हैं। हमारा मक़सद केवल ख़ुदा की इबादत करना होना चाहिए, और यह जानना चाहिए कि यहाँ होने का हमारा मक़सद ख़ुदा को खुश करना है। हमें लगातार खुद से पूछना चाहिए कि हमारे जिंदगी में सबसे अहम् चीज क्या है और हमें ख़ुदा को अपनी नंबर एक प्राथमिकता बनानी चाहिए।
कोई भी दो स्वामी की सेवा नहीं कर सकता; क्योंकि या तो वह एक से बैर और दूसरे से मोहब्बत रखेगा, या वो एक से लगा रहेगा, और दूसरे को तुच्छ जानेगा। आप ख़ुदा और दौलत की सेवा नहीं कर सकते। — मत्ती 6:24, लूका 16:13
जो शख़्स भी अच्छा काम करेगा, चाहे वो मर्द हो या औरत, बशर्ते कि हो वो ईमानवाला, उसे हम दुनिया में पाकीज़ा ज़िन्दगी बसर कराएँगे, और (आख़िरत में) ऐसे लोगों को उनके बदले उनके बेहतरीन आमाल के मुताबिक़ देंगे। (16:97)
ख़ुशी सिर्फ अल्लाह के आगे सर तस्लीम ख़म करना है
( Donna A.)
Source By: July 2007 Submitter Perspective
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नोट : यह आर्टिकल मस्जिद टक्सन की वेबसाइट के submitter perspective के जुलाई 2007 के संस्करण का हिंदी अनुवाद है